4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति 22/11/2019 आलेख हस्तिनापुर एक ऐतिहासिक भूमि: डॉ प्रीति सुराना 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति 15/11/2019 दिव्या के देव डिवाइन किड्स स्कूल के कार्यक्रम में अन्तरा शब्द शक्ति की सहभागिता क्षितिज जैन कुमुद शाह डॉ वासिफ क़ाज़ी अमिताभ प्रियदर्शी किरण मोर सुरेंद्र चतुर्वेदी ... See more 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति आज का अंक 1/11/2019 मुकेश कुमार सिन्हा उमाकांत यादव वरदान जिंदल नीलाक्षी मृणाल हेमन्त बोर्डिया दिव्या राकेश शर्मा इमानुएल दीप डॉ अनीश गर्ग प्रीति सुराना सजीव 'शशि' ... See more 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति शत शत नमन टुकड़ों को जोड़ बनाया एक अखंड भारत, तब ‘सरदार’ कहलाए वल्लभ भाई पटेल। "राष्ट्रीय एकता दिवस" की हार्दिक शुभकामनाएँ। अन्तरा शब्दशक्ति ... See more 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति *शास्त्रों में यम द्वितीया का महत्व एवं कथा* *पांच दिवसीय दीपोत्सव का समापन दिवस है भाईदूज* भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भैयादूज अथवा यम द्वितीया को मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है। इस दिन बहनें भाई को अपने घर आमंत्रित कर अथवा सायं उनके घर जाकर उन्हें तिलक करती हैं और भोजन कराती हैं। ब्रजमंडल में इस दिन बहनें भाई के साथ यमुना स्नान करती हैं जिसका विशेष महत्व बताया गया है। भाई के कल्याण और वृद्धि की इच्छा से बहनें इस दिन कुछ अन्य मांगलिक विधान भी करती हैं। यमुना तट पर भाई-बहन का समवेत भोजन कल्याणकारी माना जाता है। इस दिन भगवान यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने जाते हैं। उन्हीं का अनुकरण करते हुए भारतीय भ्रातृ परंपरा अपनी बहनों से मिलती है और उनका यथेष्ट सम्मान पूजनादि कर उनसे आशीर्वाद रूप तिलक प्राप्त कर कृतकृत्य होती हैं। बहनों को इस दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए अक्षत (चावल) कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात यमभगिनी यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए, तदंतर भाई को तिलक लगाकर भोजन कराना चाहिए। इस विधि के संपन्न होने तक दोनों को व्रती रहना चाहिए। *इस पर्व के संबंध में पौराणिक कथा* सूर्य की संज्ञा से 2 संतानें थीं- पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उसे ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, किंतु यम और यमुना में बहुत प्रेम था। यमुना अपने भाई यमराज के यहां प्राय: जाती और उनके सुख-दुख की बातें पूछा करती। यमुना यमराज को अपने घर पर आने के लिए कहती, किंतु व्यस्तता तथा दायित्व बोझ के कारण वे उसके घर न जा पाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुंचे। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। यमराज अपनी बहन से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना को विविध भेंटें समर्पित कीं। जब वे वहां से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया। यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा- भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहां आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा उसे भेंट दें, उसकी सब अभिलाषाएं आप पूर्ण किया करें एवं उसे आपका भय न हो। यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्योहार मनाया जाने लगा। *वस्तुतः इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है भाई-बहन के मध्य सौमनस्य और सद्भावना का पावन प्रवाह अनवरत प्रवाहित रखना तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना। इस प्रकार 'दीपोत्सव-पर्व' का धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय महत्व अनुपम है।* भारत रत्न महामहोपाध्याय डॉ० पी० वी० काणे के अनुसार भ्रातृ द्वितीया का उत्सव एक स्वतंत्र कृत्य है, किंतु यह दिवाली के तीन दिनों में संभवतः इसीलिए मिला लिया गया कि इसमें बड़ी प्रसन्नता एवं आह्लाद का अवसर मिलता है जो दीवाली की घड़ियों को बढ़ा देता है। भाई दरिद्र हो सकता है, बहिन अपने पति के घर में संपत्ति वाली हो सकती है; वर्षों से भेंट नहीं हो सकी है आदि-आदि कारणों से द्रवीभूत होकर हमारे प्राचीन लेखकों ने इस उत्सव की परिकल्पना कर डाली है। भाई-बहन एक-दूसरे से मिलते हैं, बचपन के सुख-दुख की याद करते हैं। इस कृत्य में धार्मिकता का रंग भी जोड़ दिया गया है। *चित्रगुप्त जयंती* इसके अलावा कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में श्री धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले श्री चित्रगुप्त जी का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। बहन मांगे भाई का प्यार, नहीं चाहे मांगे उपहार। रिश्ता रहे अटूट सदियों तक, मिले मेरे भाई को खुशिया अपार। अन्तरा-शब्दशक्ति की ओर से आप सभी को भाई दूज की हार्दिक मंगलकामनाएँ। *संकलनकर्ता* *संस्थापक एवं संपादक* *डॉ. प्रीति समकित सुराना* 15-नेहरू चौक, वारासिवनी (मप्र) ... See more 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति आज का अंक 28/10/2019 *गोवर्धन पूजा का महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त* दिवाली के अगले दिन किये जाने वाली गोवर्धन पूजा को *अन्नकूट पूजा* भी कहा जाता है। इस दिन गौ माता और गोवर्धन पर्वत की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म में हर साल दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा करने का विधान बताया गया है। गोवर्धन पूजा प्रति वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है। इस साल यह पूजा 28 अक्टूबर यानी आज की जाएगी। ये पूजा भगवान कृष्ण की लीला से जुड़ी हुई है। *गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है* कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया " मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं" कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है। *इस वर्ष गोवर्धन पूजा मुहूर्त* गोवर्धन पूजा अक्टूबर 28 सोमवार को गोवर्धन पूजा सायाह्नकाल मुहूर्त – 03:27 PM से 05:41 PM अवधि – 02 घण्टे 14 मिनट द्यूत क्रीड़ा सोमवार, अक्टूबर 28, 2019 को प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 28, 2019 को 09:08 AM बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त – अक्टूबर 29, 2019 को 06:13 AM बजे। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा से जुड़े नियम- गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। हालांकि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के कुछ खास नियम भी बताए गए हैं। जिनका पालन न करने पर व्यक्ति को पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती है। 1-गोवर्धन परिक्रमा करते समय इस बात का ध्यान हमेशा रखें कि आपने जहां से परिक्रमा करनी शुरु की है वहीं से आपको गोवर्धन परिक्रमा समाप्त भी करनी चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने पर ही व्यक्ति को गोवर्धन परिक्रमा का फल प्राप्त होता है। 2-गोवर्धन परिक्रमा शुरु करने से पहले मानसी गंगा में स्नान अवश्य कर लेना चाहिए। अगर ऐसा करना संभव न हो तो हाथ मुंह धोकर भी आप परिक्रमा शुरु कर सकते हैं। 3-विवाहित लोगों को परिक्रमा हमेशा जोड़े में ही करनी चाहिए। इसके अलावा गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय हमेशा पर्वत को अपने दाईं और ही रखें। 4-गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कभी भी अधूरी छोड़ने की गलती न करें। शास्त्रों में कहा जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति पाप का भागीदार बनता है। यदि किसी कारण से परिक्रमा अधूरी छोड़नी पड़े तो जहां से आप परिक्रमा अधूरी छोड़ रहे हैं वहीं जमीन पर माथा टेककर भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगकर उन्हें प्रणाम करके उनसे परिक्रमा समाप्ती की अनुमति लें। 5-गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा जहां तक हो सके सांसारिक बातों को त्याग कर पवित्र अवस्था में हरिनाम व भजन कीर्तन करते हुए ही करनी चाहिए। 6-गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय किसी भी प्रकार का धूम्रपान या कोई नशीली वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए। 7-महिलाओं को पीरियड्स के दौरान गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। लेकिन परिक्रमा करते समय यदि किसी महिला को मासिक धर्म आ जाए तो वह परिक्रमा अधूरी नहीं पूरी ही मानी जाती है। कृष्ण की शरण में आ कर, भक्त नया जीवन पाते है। इसलिए गोवर्धन पूजा का दिन, हम सच्चे मन से मानते है। आप सभी को अन्तरा-शब्दशक्ति की ओर से गोवर्धन पूजन की हार्दिक शुभकामनाएँ। *संकलनकर्ता* *संस्थापक एवं संपादक* *डॉ. प्रीति समकित सुराना* 15-नेहरू चौक वारासिवनी (मप्र) ... See more 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति कृष्ण की शरण में आ कर, भक्त नया जीवन पाते है। इसलिए गोवर्धन पूजा का दिन, हम सच्चे मन से मानते है। आप सभी को अन्तरा-शब्दशक्ति की तरफ से गोवर्धन पूजन की हार्दिक शुभकामनायें। ... See more 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति आज का अंक 27/10/2019 *दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ* दीपावली, दिवाली या दीवाली शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिन्दू त्यौहार है। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दीपावली दीपों का त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है। दीवाली भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्हात् (हे भगवान!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं। दीवाली के दिन नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश होता है। दीवाली नज़ारों, आवाज़ों, कला, और स्वाद का त्योहार है। जिसमें प्रांतानुसार भिन्नता पायी जाती है। *दीवाली पर 50 साल बाद बन रहा है लक्ष्मी योग, धन प्राप्ति के लिए इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा।* लगभग पचास साल बाद दिवाली पर रविवार को लक्ष्मी योग बन रहे हैं। विद्या, बुद्धि, विवेक, धन, धान्य, सुख, शांति और समृद्धि के मंगलयोग के बीच देवी भगवती का आगमन होगा। सायंकालीन दिवाली पूजन के लिए इस बार डेढ़ घंटा प्राप्त होगा लेकिन दिन में कारोबारी दृष्टि से दिवाली पूजन के कई मुहूर्त हैं। *अपने कुल के साथ लक्ष्मी का आगमन* कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या अर्थात दिवाली लक्ष्मी जी का प्राकट्य दिवस है। वह श्रीनारायण के साथ पृथ्वी पर आती हैं। उनके साथ उनका पूरा कुल होता है। यानी समस्त देवी, देवता, ग्रह, नक्षत्र। यही ऐसा पर्व है, जब त्रिदेवियां और त्रिदेव अपने कुल के साथ पृथ्वी पर आते हैं। सबसे अंत में महानिशाकाल में काली कुल आता है। इसलिए इसको सबसे बड़े पर्व की संज्ञा दी गई है। पांच पर्वों की श्रृंखला का यह तीसरा पर्व है। इस अमावस्या को सबसे बड़ी अहोरात्रि कहा गया है। लगभग पचास साल बाद दिवाली पर रविवार को लक्ष्मी योग बन रहे हैं। विद्या, बुद्धि, विवेक, धन, धान्य, सुख, शांति और समृद्धि के मंगलयोग के बीच देवी भगवती का आगमन होगा। सायंकालीन दिवाली पूजन के लिए इस बार डेढ़ घंटा प्राप्त होगा लेकिन दिन में कारोबारी दृष्टि से दिवाली पूजन के कई मुहूर्त हैं। *पूजन महत्व और स्थिर लग्न* दिवाली पूजन में स्थिर लग्न का महत्व होता है। ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत के मुताबिक शुभ कार्यों के लिए स्थिर लग्न ही सर्वश्रेष्ठ होता है। स्थिर लग्न में पूजा करने से लक्ष्मी जी का स्थायी वास होता है। दरिद्रता की समाप्ति होती है। *अमावस्या दो दिन* दिवाली पूजन के समय चन्द्रमा का तुला राशि में प्रवेश हो जायेगा और शुक्र पहले से ही तुला राशि में है। ज्योतिष में इसे लक्ष्मी योग कहते हैं। धन, समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला लक्ष्मी योग पचास साल बाद आ रहा है। अमावस्या भी दो दिन रहेगी। काफी समय बाद धन त्र्योदशी, रूप चतुर्दशी और कार्तिक अमावस्या ( तीनों ही पर्व) दो दिन के रहे हैं। *घरों और व्यावसायिक स्थलों पर पूजन मुहूर्त* फैक्टरी और कारखाने में पूजन : 27 अक्तूबर को सुबह 8 से 10.30 (स्थिर लग्न वृश्चिक) और अपराह्न 2.10 से 3.40 बजे तक (स्थिर लग्न कुंभ) अमावस्या प्रारम्भ : 27 अक्तूबर दोपहर 12.33 बजे से अमावस्या समाप्त : 28 अक्तूबर को प्रात: 09.08 बजे प्रदोषकाल: शाम 5.36 से रात 8.11 बजे तक *दुकानों में पूजन का समय (खाता-बही)* -सायं 6.40 से सायं 8.40 बजे तक -घरों में लक्ष्मी पूजन का समय -27 अक्तूबर को सायं 6.30 से -रात्रि 8.30 बजे तक *दो विशेष मुहूर्त* -सायं 6.42 से 8.37 बजे तक ( वृषभकाल) ’ प्रात: 10.26 से दोपहर 12.32 बजे तक (धनु लग्न) *महानिशा पूजन (काली)* मध्यरात्रि उपरांत 1.15 से 3.25 बजे तक (सिंह लग्न) (ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत, पंडित विष्णु दत्त शास्त्री, पंडित सुरेंद्र शर्मा, पंडित आनंद झा) *पूजन कैसे करें* ’लक्ष्मी जी की अकेले पूजा नहीं करनी चाहिए वरन श्रीनारायण के साथ करें’ लक्ष्मी जी की पूजा उनके गरुड़ पर सवारी का ध्यान करके करें *इस क्रम में करें पूजा* सर्वप्रथम गुरु ध्यान, गणपति, शिव, श्रीनारायण, देवी लक्ष्मी, श्रीसरस्वती, मां काली, समस्त ग्रह, कुबेर, यम और शांति मंत्र। *व्यापारी वर्ग यह करें* व्यापार वृद्धि के लिए 5 कौड़ी 5 कमलगट्टे देवी को अर्पित करें। *क्या करें* लक्ष्मी जी को अनार और कमल पुष्प अवश्य चढाएं *यह पाठ करें* कनकधारा, देवी सूक्तम ( 5 या 11 बार), श्रीसुक्तम ( 5 या 11 बार), श्रीलक्ष्मी सहस्त्रनाम, विष्णु सहस्त्रनाम, श्रीदुर्गा सप्तशती का पांचवा या 11 वां अध्याय। नील सरस्वती स्तोत्र (विद्यार्थियों के लिए), गणपति के लिए संकटनाशन स्तोत्र मंत्र प्रतिष्ठान और खाता-बही पूजन- ऊं श्रीं ह्रीं नम: धन प्राप्ति ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नम: विद्या प्राप्ति ॐ ऐं व्यापार वृद्धि ॐ गं गं श्रीं श्रीं श्रीं मातृ नम: लक्ष्मी पूजन ऊं सौभाग्यप्रदायिनी, रोगहारिणी, कमलवासिनी, श्रीप्रदायिनी महालक्ष्मये नम: 11 बार अवश्य पढ़ें । *जैनों के लिए विशेष त्योहार दीवाली* *पर्व है तीर्धंकर महावीर के निर्वाण का, *पर्व है गौतम स्वामी के केवलज्ञान का, *पर्व है ऋद्धि सिद्धि का, *पर्व है मॉ महालक्ष्मी की साधना का, *पर्व है माँ सरस्वती की आराधना का, *पर्व है आत्मदीपो की दीपमालिकाओ का, *आप सभी को भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव एवं दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक *शुभकामनाएँ एवं मंगलकामनाएँ।* *संकलनकर्ता* *संस्थापक एवं संपादक* *डॉ. प्रीति समकित सुराना* 15-नेहरू चौक, वारासिवनी (मप्र) ... See more 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति आज का अंक 22/10/2019 प्रीति सुराना पिंकी परुथी अनामिका शेखर अस्तित्व गुलशन प्रेम स्वधा रविन्द्र मुकेश नादान दिव्या राकेश शर्मा प्रणय श्रीवास्तव कमलेश कमल अजय 'बेबस' ... See more 4 years ago अन्तरा-शब्दशक्ति आज का अंक 19/10/2019 वंदना गुप्ता किशोर छिपेश्वर रितेश अग्रवाल तरुणा पुंडीर 'तरुनिल' रजनी शर्मा प्रतिमा संत बाजपेयी अंकिता जैन दिनकर राव दिनकर पंकज प्रियम बुशरा तबस्सुम ... See more